एक दिन यूं ही बैठे-बैठे तय हो गया कि हम लोग बोधिसत्व अंकल और आभा आन्टी के घर जायेंगे। अरे अरे उनके घर नहीं बल्कि भानी दीदी और मानस भैया के घर जायेंगे। बस उसके बाद क्या था। मैं तो कहीं भी घूमने जाने के लिए एकदम तैयार ही रहता हूं। और फिर ये भानी दीदी का घर तो हमारे घर से बहुत दूर थोड़ी
है। ये अलग बात है कि उस दिन मैंने तैयार होते वक्त मम्मी को बहुत तंग किया। कैसे...अरे बहुत सारे तरीक़े हैं।
--जब मम्मी हाथ-पैर धोने के लिए बुलाएं तो यहां वहां भागने लगो ।
--ऐन टाइम पर शू-शू कर दो ।
--ज़ोर-ज़ोर से रोने लगो ।
--मम्मी के बाल खींच दो ।
--पापा के साथ खेलने लगो ।
--सारे खिलौने कमरे में बिखेर दो ।
--ऐसे दिखाओ कि भूख लगी है । पर जब खाना मिले तो 'थू' 'थू' करने लगो
--
वग़ैरह ।
ऐसे तमाम कारनामों के ज़रिए मैंने मम्मी को 'लेट' करवा दिया। फिर हम पहुंचे भानी दीदी के घर। बोधिसत्व अंकल ने अपने घर का 'रेनोवेशन' करवाया है। मैं उनके घर दूसरी बार गया था। इसलिए नए-नए घर को पहचान नहीं पाया। पहली बार पता है कब गया था--जब मैं अपनी मम्मा के पेट में था। मकर-संक्रांति की खिचड़ी खाने के लिए।
जब भी मम्मी-पापा बोधि अंकल के घर जाते हैं तो दो ग्रुप बन जाते हैं बात करने वालों के। एक ग्रुप मम्मा और आभा आंटी का। और दूसरा ग्रुप पापा और बोधि अंकल
का। हालांकि अकसर ये ग्रुप मिलकर एक ग्रुप भी बना लेते हैं। तो बस पहुंचते ही पापा किताबों और जाने किन-किन बातों में 'बिज़ी' हो गए। मुझे बिज़ी होने के लिए एक खिड़की नज़र आई। फौरन उस पर कब्जा कर लिया। और वहां खड़े होकर इत्ती जोर जोर से आवाज़ें लगाईं कि नीचे से गुज़रने वाले लोग पीछे मुड़-मुड़ कर देखने लगे। बीच-बीच में मैं भानी दीदी के साथ मस्ती भी कर लेता था।
फिर मैंने बोधि अंकल के टेलीफोन पर निशाना लगाया। घर पर भी मैं अपने टेलीफोन से खूब खेलता हूं। यहां खेलने का मतलब है टेलीफोन को तोड़ना। किसी तरह मम्मा ने बोधि अंकल के टेलीफोन को टूटने से उस दिन बचा ही लिया वरना तो....
उसके बाद तो काफी चीज़ें थीं जिन पर हमला किया जा सकता था। मैंने गुलाब-जामुन पर भी हमला किया। उसे फौरन अपने पेट के हवाले किया। ऐसे कामों में देर थोड़ी करते हैं। भानी दीदी के साथ खेला। उनके बाल खींचे। बड़ा मज़ा आया। भानी दीदी ने मुझे एक गिफ्ट भी दी। मैं अपने बर्थडे के कुछ ही दिनों बाद गया था
ना। इसलिए। भानी दीदी मुझसे कम थोड़ी हैं । बार-बार अपनी मम्मी के कान में कहती थीं कि जादू से कहिए गिफ्ट खोले । फिर वो खुद ही उसे खोलकर देखने को इन्सिस्ट भी कर रही थीं । मुझे लगा कि फौरन गिफ्ट खोल कर देख लेनी चाहिए। इसलिए देख भी ली और खिलौने से खेल भी लिया।
इसी दौरान हम मानस भैया के कमरे में भी चले गये । दरअसल उनका एक्ज़ाम था, बेचारे पढ़ रहे थे । बीच बीच में झपकी भी ले रहे थे । हमने सोचा कि उन्हें भी तो थोड़ा तंग किया जाए ।
बड़ा मज़ा आया भानी दीदी के घर पर । बड़े लोग जाने क्या-क्या बातें करते रहे । कभी टी.वी. की । कभी ब्लॉगिंग की । कभी साहित्य की तो कभी कुछ और । पर हम बच्चे मज़े करते रहे । जाते-जाते पता है क्या हुआ । ये देखिए भानी दीदी और मैं अपनी अपनी मम्मी की गोद में लाड़ दिखा रहे हैं । और टा-टा-बाय-बाय कर रहे हैं । भानी दीदी इत्ती बड़ी होकर भी अपनी मम्मी की गोद में चढ़ी हैं । ही ही ही ।
उड़नतश्तरी अंकल ने कहा है कि बोधि अंकल का भी फोटो दिखाया जाए । ये रहा । मैंने बोधि अंकल के साथ भी बहुत मस्ती की ।
लीजिए मैं तो भानी दीदी के घर हो आया । अब लिस्ट बना रहा हूं कि आगे मुझे किस-किस के घर जाना है । मैं जादू हूं ना मैं कुछ भी कर सकता हूं ।